कोच्चि ब्लास्ट: कौन हैं येहोवा विटनेस और कौन है धमाकों की ज़िम्मेदारी लेने वाला शख़्स|
केरल के कोच्चि में येहोवा विटनेस ईसाई समुदाय के कन्वेंशन सेंटर में हुए धमाकों में दो महिलाओं की मौत हो गई है और 51 अन्य घायल हैं.
इस बीच, केरल पुलिस ने एक ऐसे शख़्स को हिरासत में लिया है, जिसने रविवार सुबह हुए इन दो बम धमाकों की ज़िम्मेदारी लेने का दावा किया है.
डोमिनिक मार्टिन नाम के इस शख़्स ने पुलिस के सामने सरेंडर करने से पहले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म फ़ेसबुक पर इन धमाकों की ज़िम्मेदारी लेते हुए एक वीडियो पोस्ट किया.
मार्टिन का कहना था कि वह 16 साल से जिहोवा विटनेस समुदाय से जुड़े थे लेकिन कभी इस बारे में गंभीर नहीं थे.
मार्टिन ने कहा, “छह साल पहले मैंने उनकी शिक्षाओं पर विचार किया और पाया कि ये देश विरोधी हैं. मैंने उनसे अपने तौर-तरीक़े बदलने को कहा लेकिन उन्होंने मेरी चेतावनियों को नज़रअंदाज़ कर दिया.
बुरी तरह जल गए हैं कई घायल
धमाकों को लेकर किए जा रहे कई तरह के दावों के बीच कलामासेरी अस्पताल में भर्ती घायलों के परिजन सन्न हैं.
केरल के इडुक्की से संबंध रखने वाले तमिल फ़िल्म निर्देशक लक्षमण प्रभु अपनी 57 वर्षीय सास और 15 साल की साली को देखने अस्पताल पहुंचे हैं.
वह कहते हैं, “मेरी सास की पीठ पूरी तरह जल गई है. उनकी टांगों में भी चोट आई है. उनका शरीर 50-55 प्रतिशत तक झुलस गया है.”
वह कहते हैं, “मेरी साली 10वीं में पढ़ती है. सास और साली दोनों येहोवा विटनेस हैं. मेरी पत्नी ईसाई (जैकबाइट) हैं और मैं हिंदू हूं.”
प्रभु और उनकी पत्नी घायल नहीं हुए क्योंकि वे घर पर ही थे.
आईसीयू के बाहर बैठीं कैरलीन सारा बताती हैं कि उनकी आंटी मॉली सीरियन 80 प्रतिशत झुलस गई हैं.
वह बताती हैं, “मेरी बहन वीनस शाजू पोन्नली 70 प्रतिशत झुलस गई हैं. उनके हाथों और पैरों को बुरी तरह नुक़सान पहुंचा है. वह चल नहीं पा रही हैं.”
प्रभु की तरह सारा भी उस समय घर पर थीं, जब उन्हें ब्लास्ट की ख़बर मिली.
सारा और उनके माता-पिता रोमन कैथलिक हैं जबकि उनकी आंटी मॉली और उनकी बेटी येहोवा विटनेस हैं.
कौन हैं येहोवा विटनेस
येहोवा विटनस ईसाइयों का एक छोटा सा समूह है जो मानता है कि जब दुनिया का अंत क़रीब होगा तो यीशु फिर आएंगे.
यह समुदाय उस समय चर्चा में आया था जब कोट्टायम में तीन स्कूली छात्रों ने मॉर्निंग असेंबली में अपनी धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हुए राष्ट्रगान गाने से इनकार कर दिया था.
इन छात्रों को स्कूल से निकाल दिया गया था जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए उनके पक्ष में फ़ैसला सुनाया था कि उन्हें स्कूल से निकालना उनकी ‘धार्मिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन’ है.